कौन है जो रोक लेता है राह, जब भी होती है पार जाने की चाह।
एक लहर है जो सीने में है दबी, कभी कभी आता है उसमें उफान
पर कोई है...यहां... इसी दुनिया में... मेरे आस-पास
जिसने अटका रखा है... न निकलने पाती हूं... न समाने पाती हूं
कब तक रहूंगी इस कदर... शायद यह खुद का बहाना है... न जाने का बाहर
या पता नहीं कौन सी मजबूरी...
Good one ! lekin ise poetry ki form mein likhiye n ?
ReplyDelete