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Tuesday, March 16, 2010

नए और पुराने पत्ते

आज अचानक बस की खिड़की से सड़क किनारे खड़े पेड़ों पर नजर चली गई। नए-नए कोमल पत्ते से भरे लेकिन कई ऐसे पेड़ भी थे जिन पर वही पुराने धूल से भरे पत्ते थे वे मुझे उदास से लगे। हो सकता है यह मेरे मन का वहम हो..और कई ऐसे भी थे जिनके पुराने पत्ते तो गिर गए थे पर अभी नई और कोमल पत्तियों के इंतजार में वे खड़े हैं।
खैर जल्दी ही ये कोमल पत्ते भी धूल की आंधियों से पुराने और गंदले से हो जाएंगे। अभी गर्मी आने को ही है धूल भरी गर्म हवाएं इन पर परत दर परत धूल जमा कर देंगी और फिर इन्हें इंतजार होगा अगले साल का जब इन पर फिर से नई पत्तियों का आगमन होगा..।

Monday, March 8, 2010

एक दिन हमारा और बाकी का..!

आज लोग अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। लोग क्या औरतें मना रही हैं अपना एक दिन। क्यों हमारा एक दिन और बाकी के दिन क्या पुरुषों के लिए। हम औरतें भी न खुद को दया का पात्र बना लेती हैं।

Friday, March 5, 2010

खुद ही मारी है कुल्हाड़ी

सच कभी-कभी लगता है कि हम महिलाओं ने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। हम चाहती क्या हैं..
पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली महिलाएं चाहे कितना भी उनसे आगे निकल जाएं पर हमारी पुरानी जिम्मेदारियां कभी पीछा नहीं छोड़ती..। बिना मतलब ही हम इस होड़ मे लगे हैं कि हम उनसे कम नहीं क्यूं भला..।
कुछ दिनों पहले हमारे घर एक बुजुर्ग महिला रिश्तेदार का आना हुआ। उन्होंने मुझे आफिस और घर दोनों जगह संभालने कि बात पर कहा कि हमने ही आराम की जिंदगी गुजारी है तुमलोग पता नहीं कैसे दिन भर आफिस कर फिर घर भी संभाल लेते हो। हम तो घर में आराम से रहते थे कोई भाग दौड़ नहीं और पति के पैसे को आराम से खर्च करते थे।
लेकिन मुझे कभी यह भी अहसास होता है कि मैं भी कुछ हूं अगर पुरुष अपना वर्चस्व जता सकता है तो महिला भी अपना अस्तित्व जता सकती है।
मैं भी आफिस जाती हूं और मेरे पति भी पर फर्क देखिए वो आते हैं उनकी मां कहेंगी अरे कैसा थका हुआ है पानी लाओ, नाश्ता लाओ.. वगैरह।
और जब मैं पहुंचती हूं तो
आज बेटा बहुत रोया है.. कामवाली नहीं आयी है.. पानी नहीं चला है.. इसके कपड़े कहां है खाना कब बनेगा देर हो रही है..।