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Tuesday, January 15, 2013

बस यादें रह जाती हैं


सोच हमें कहां कहां से घूमा के ले आती है. कहीं बैठे हैं और कहीं से घूम आते हैं. न जाने कैसी कैसी सोच
 अभी ऑफिस में बैठी हूं खाली पडा कॉफी का कप एक साइड पडा है अचानक मामाजी की याद आ गयी.
मेरी यादें तो धुंधला गयी पर सब बताते हैं बचपन में मैं उनके कितने क्‍लोज थी. अब भी वो मुझसे उसी तरह प्‍यार से मिलते हैं शायद मैं उनके चहेते बच्‍चों में से एक हूं.
 छुटपन में मैं और मेरे भाई उन्‍हें अंतर्देशीय में अपनी फरमाइशें लिख भेजते थे. लिस्‍ट काफी लंबी होती थी. उनका जवाब भी आता था. उस वक्‍त वो दिल्‍ली में पढाई के सिलसिले में रहा करते थे. कमाई तो थी नहीं सो छुटि़टयों में कुछ नहीं लेकर आते फिर भी हम खुश हो जाते थे उनसे मिलकर :)
आज वह भगवान की दया से काफी अच्‍छी जगह हैं और हमारी छोटी क्‍या बडी से बडी फरमाइश पूरी कर सकते हैं
पर फासले और रिश्‍ते कुछ इस कदर बदल गए कि अब हम उनसे कुछ कहने क्‍या एक फोन करने से पहले दस बार सोचते हैं बिजी होंगे या पता नहीं क्‍या सोचेंगे. मोबाइल पर नंबर सर्च करते करते एकाएक हाथ थम जाता है
 किस तरह रिश्‍ते बदलते हैं न जिंदगी में... भाई बहन जो साथ में लडते  हैं, चीजों पर हक जमाते हैं चीजें शेयर करते हैं आगे चलकर अपनी जिंदगी और जिम्‍मेदारियों में इस तरह व्‍यस्‍त हो जाते हैं कि रिश्‍तेदारों सा मिलना जुलना. जी चाह कर भी पहले की तरह सब नहीं हो पाताइसीलिए कहते हैं शायद बीता वक्‍त लौट कर नहीं आता
 बस यादें रह जाती हैं वो भी धीरे धीरे धुंधली सी हो जाती है, पर इन यादों के साथ आंखें जरूर नम होती हैं