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Tuesday, October 25, 2011

मिस यू...


क्यों बार-बार फोन कर देती हो मम्मी, और एक ही बात पूछती हो... क्या हुआ मैं बिल्कुल ठीक हूं।
अच्छा, मम्मी का जवाब पूछती हैं बिजी हो क्या? नहीं, बिजी तो नहीं हूं पर तुम बार-बार फोन करती हो पैसे भी तो जाते हैं न तुम्हारे..
और कल से मैं बेचैनी से बार-बार फोन कर रही हूं मम्मी बेटू ठीक है न... और मम्मी बोलती हैं हां वो बहुत अच्छे से है।
हां, वो तो होगा देखा मैंने ट्रेन के एक्साइटमेंट में बड़े आराम से बोला, मम्मा, तुम दूसरी ट्रेन से आना मैं फोन करूंगा। पर मेरा ही मन नहीं मान रहा स्टेशन से ट्रेन खुली और मेरी आंख आंसू से भर गए... मन में आया मैं कहीं कठोर तो नहीं हो रही कोई ढ़ाई साल के बच्चे को खुद से अलग करता है क्या...।
अब क्या.... अब तो ट्रेन निकल गई। घर जाने का मन नहीं हम दोनों का ही नहीं। कहीं चलते हैं न...। लगता है उन्हें भी बेटे को भेजना अच्छा नहीं लग रहा बोलते नही पर उनका चेहरे पे सब झलक जाता है।
जब स्टेशन से घर पहुंचते हैं तो उसकी छोटी-छोटी चीजें बिखरी पड़ी हैं, फिर से मन भारी हो गया... उफ ये क्या किया सोते वक्त उसकी बाहें मेरे गले में पड़ती थी बड़ी याद आयी उसकी... लग रहा है कहीं से ले आऊं। उन्हें कहती हूं.. गलत किया हमलोगों ने उसे भेज कर। कहते हैं... कोई नहीं वो बड़े आराम से गया है हंस के बाय भी तो किया उसने और तीन दिन बाद ही तो तुम भी पहुंच जाओगी। पर फोन पर वो भी अपडेट लेना नहीं भूलते। आफिस निकलते वक्त बोलते हैं जरा बेटू से बात कर लो... लगता है उसका बाय करना उन्हें भी खल रहा।
जब खुद मां का रोल निभाना पड़ रहा है तो मम्मी की परेशानी का अंदाजा हो रहा है कि क्यों बार-बार फोन करती हैं मुझे।
बस अब ये तीन दिन गुजर जाए जल्दी से और मैं पहुंच जाऊं उसके पास...।

Saturday, October 22, 2011

आज के सुदामा...


लोग इतने उलझे और टेढे हैं की सीधी नजर से तो साफ दिखते ही नहीं और इस चक्कर में मैं पहली नजर में किसी इंसान को सही समझ लेती हूं और फिर बाद में पता चलता है कि कितने टेढे लोगों से मेरा वास्ता पड़ा है।
खुद कुछ कर नहीं सकते और दूसरों की टांगे खींचने की मंशा रखते हैं। ऐसे ही लोग दूसरों की खुशी से हमेशा जलते हैं। बॉस को गालियां देने के अलावा कुछ कर ही नहीं सकते पता नहीं किसकी पैरवी से नौकरी पा ली तो खुद को तुर्रम खां समझने लगे अरे... एक लाइन खुद से लिख कर दिखाओ तो जाने। हां लेकिन दूसरों को चुनौती देने से घबराते नहीं। शायद उन्हें लगता है कि काफी जीनियस हैं या अगर किसी कंपटीशन में बैठे तो सबसे ज्यादा नंबर उन्हें ही आए और बातें तो देखो फलां मंत्री से हमारी पहचान है अरे उसे तो जो कह दूंगा कर देगा लेकिन सुदामा जो ठहरे बेचारे कृष्ण से कुछ मांगेंगे कैसे...।
मुझे तो हंसी आती है जो दूसरों को कहते हैं तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे बॉस... हां मुझे कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि मुझमें जो काबिलियत है हो सकता है तुममे न हो इसलिए निखारो उस काबिलियत को ताकि लोग तुम्हें भी सराहे।

Sunday, October 16, 2011

काश तुम आ जाओ मनाने...


क्या ये रिश्ते इतने आसान है कि आपके बोलने से साथ छूट जाएगा
मुझे पता है कि आपको मैं पसंद नहीं
पर जो सात फेरों का बंधन है वह सिर्फ कहने को नहीं वो दिल में गहरे समा जाता है चाहे आप या मैं कितना भी इनकार करें पर यह हो ही नहीं सकता कि हम दोनों के बीच दुश्मनी हो...
जरा जरा सी बात पर गुस्सा हो जाना तीखी बातें कहना नफरत भरा चेहरा पर दिल में कहीं एक छुपी तमन्ना कि तुम एक बार आ जाओ मेरे पास...
माफ तो हर बार कर देते हैं आप
पर इस बार हिम्मत नहीं हो रही बार-बार वही नफरत दिखता है चेहरे पर
चली जाओ छोड़कर मुझे पर क्या आप रह पाएंगे मेरे बिना... चाहे मैं कितनी ही गंवार, बेकार क्यों न हूं पर ये तो मुझे भी पता है कि हम दोनों एक दूसरे के कितने करीब हैं कि अब एक दूजे के बिना जी नहीं पाएंगे और अगर जिएंगे भी तो इसी आस में कि काश तुम आ जाओ मनाने...