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Tuesday, July 25, 2017

भीख मांगने वाले भी देने लगे हैं धमकी...



भागा जा रहा है, क्यों भागा जा रहा है, एक-दो रुपया नहीं दे सकता क्या ... इन शब्दों के कानों में पड़ते ही, ध्या‍न टूटा तो देखती हूं कि 30-32 साल का एक शख्स अजीब से कपड़े पहने ऑटो ड्राइवर को धमकी सा दे रहा है।
यह दृश्य नोएडा सेक्टर 62, सुबह करीब 9 बजे का है जब मैं ऑफिस के लिए निकली। सवारी को उतारने भर के लिए ऑटो रुकी थी और फिर जैसे ही स्टार्ट हुई, सिर पर काला कपड़ा लपेटे,काले रंग का 30 के आसपास उम्र वाला एक शख्स लगभग डांटने के अंदाज में बोला, ‘भागा जा रहा है, भागा जा रहा है... ऑटो ड्राइवर को लगा शायद उसे भी जाना है इसलिए ऑटो रोक रहा है। लेकिन अगले ही पल ड्राइवर का भ्रम टूट गया जब उसने हाथ पसारते हुए कहा- एक दो रुपया तो देता जा। ड्राइवर समेत ऑटो पर सवार हम सवारियों को भी तेज हंसी आ गयी, शायद उन्होंने भी पहली बार इस तरह किसी को भीख मांगते देखा हो।

भीख मांगने वालों को आजतक मैंने रोते, गिड़गिड़ाते, दुआएं देते सुना था पर आज गुस्सें में पैसे मांगते देख हैरान रह गयी। ऑफिस आने के क्रम में करीब दस मिनट ऑटो और फिर रिक्शे़ का रास्ता है। सुबह इतनी हड़बडी होती है...। पर आज बार-बार यह दृश्यो मेरे आंखों के सामने आ रहा है तो सोचा अपने ब्लॉग में इसे दर्ज ही कर लूं।

Friday, July 14, 2017

न्यूट्रल होना चाहती हूं मैं...



अब आपकी तारीफ से मुझ पर कोई असर नहीं होता मतलब न निगेटिव न पॉजिटिव। न्यूट्रल वर्ड से वाकिफ ही होंगे chemistry में पढ़ा हो शायद और यदि नहीं पढ़ा तो मैं बता देती हूं, जिसपर किसी भी केमिकल रिएक्शकन का कोई असर नहीं होता उसका अपना अस्तिरत्व होता है बिल्कुल न्यूट्रल सा।
वैसे भी आपके और आपके पूरे परिवार से मैंने आज तक अपने लिए तारीफ के बोल बिल्कुल भी नहीं सुना है और अगर सुना भी है तो वह बेमतलब नहीं होता। यानि उसके पीछे कोई कारण होता है, या तो मुझे खुश करवाकर अपना काम साधना या फिर कोई काम करवाना।
खैर, अक्सर पत्नियां अपने पति से तारीफ सुनती हैं और खुश होती हैं, लेकिन मैं अपवाद हूं शायद। मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ कभी भी। हां हाल का एक वाकया याद है कि आपके सामने ही आपकी एक जूनियर कलीग लड़की ने मेरी तारीफ की थी, जिसपर आपने कहा अरे, किसी के सामने उसकी तारीफ नहीं करते। मैं बिल्कुील चौंक गयी थी उस पल को क्योंहकि दस साल होने को आए शादी के... अब तक आपने नहीं पहचाना मुझे तो अब क्या् पहचानेंगे। बस उस पल ही दिल से उम्‍मीद की वो डोर भी तोड़ दी जिसकी चाह थी कि कभी तो आप मेरे होंगे।
अब मैं खुश हूं तारीफ किया नहीं किया सब बराबर मेरे लिए। अब कोई उम्मीद नहीं रखना चाहती मैं आपसे और न आपके परिवार के किसी व्यक्ति से। बस रहना है आपके घर में जहां हर सांस पर यह अहसास दिलाया गया है कि तुम्हें ये करना है, ये नहीं करना है, इससे बात करनी है, इससे नहीं करनी है, ये खाना सही नहीं है...उफ कहीं पढ़ा था लड़कियों को जिंदगी में अपना घर नहीं मिलता चाहे वह सब कुछ न्यौैछावर क्यों न कर दे। अब इस बात का अहसास हो चला है।
इस पोस्ट को लिखते लिखते गले में एक गोला सा अटका हुआ मालूम हो रहा है, आंखों में पानी सा आ रहा है और जलन भी शायद नींद पूरी नहीं हुई है न इसलिए।

Tuesday, July 4, 2017

अब तक नहीं चिल्‍ला पायी...


आज सुबह जब जगी तो अलसाया सा मन हो रहा था पर सूरज की लाली आसमां पर दस्त क दे चुकी थी। एक मिनट की भी देरी करूं तो पता नहीं किसका क्या छूटे और कहां देर हो। बेटे का स्‍कूल , पति का ऑफिस और फिर मेरा ऑफिस... इसलिए आलस्य को त्याागने के लिए एक प्याली चाय ली और सोफे पर बैठ गयी।
खाली मन पता नहीं कहां कहां उड़ानें भरने लग जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ भी। बैठी तो थी सोफे पर मन के भीतर कुछ ऐसे लोग याद आए गए जिनकी एक भी बात याद करो तो मन अजीब हो जाए तभी मैंने अपने ख्यालों को झटके से उतार फेंका और सोचा- नहीं नहीं, सुबह ऐसे लोगों के साथ नहीं। दिल को समझाया कुछ अच्छा सोचो किसी अच्छे पल को याद करो। ऐसे इंसान के बारे में सोचो जिससे होठों पर मुस्कान आए दिल खुश हो और सुबह सुहानी हो जाए।

फिर दिमाग ढूंढने लगा ऐसे पल... मिल भी गए ऐसे लोग जो मेरा भला ही सोचते होंगे लेकिन उनकी खुशी के बजाए उनकी मौजूदा स्थिति से दिल दुखी हो गया। आस-पास कोई खुश नहीं दिखा। सब किसी न किसी चीज के लिए परेशान ही दिखे। क्यों हुआ ऐसा समझ नहीं आता...

प्याली की चाय के साथ सोचने का वक्‍त भी खत्म हो चला था, जुट गयी अपनी रोजमर्रा के काम में। लेकिन दोपहर के एक बज रहे हैं फिर से दिमाग में वही कोलाहल है कहां हैं खुश और सुखी लोग... सब ऊपर से हंसते हैं दिखावे की खुशी है आज सबके पास। मैं हर चीज समझती हूं... उनकी दिखावे की खुशी में मैं भी दिखावे की हंसी हंस लेती हूं पर मेरे मन के एक कोने में भी कचरा भरा पड़ा है।
कभी किसी ने मुझसे कहा था... तुम एक बार खुलकर चिल्लाओ अब मुझे लग रहा हर किसी को चिल्लाने की जरूरत हो गयी है। मन के भीतर जमी दर्द और दुख की परत शायद चिल्लाकर निकल जाए। अगर आप मेरा पोस्ट पढ़ रहे हैं तो आप भी एक बार खुलकर चिल्लाइए फिर देखिए मन कैसा हल्का‍ सा हो जाता है पर ये चिल्लाना भारी काम है बहुत भारी.... मैं अब तक चिल्‍ला नहीं पायी हूं