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Friday, October 23, 2015
बचपन का दुर्गा पूजा
Friday, July 24, 2015
हमेशा अलग ही रहा सुबह का रंग...
कहते हैं न कि सुबह हुई तो हर जगह उजियारा होगा और रात हुई तो सब जगह अंधेरा... पर ऐसा है क्या, मुझे नहीं लगता। मैं भारत और अमेरिका की बात नहीं कर रही कि यदि भारत में रात है तो अमेरिका में दिन होगा बल्कि मैं बात कर रही हूं इसी देश के अलग अलग घर के बारे में।
मेरी सुबह हर घर में अलग सी रही है आज तक। कहने का अर्थ जब मम्मी के घर पर थी तो सुबह अलग ही थी यहां तक कि वो गंध भी अलग थी जो अब खोजे से भी नहीं मिल सकती शायद। हर उम्र में सुबह के मायने बदलते गए। रात भी अलग ही थी उस वक्त। मम्मी के साथ सोना और अगर हल्का सा बुखार चढ़ गया तब तो मेरे चेहरे को मम्मी अपने आंचल से ढक देती थी रात को सोते वक्त। उनके आंचल की खुश्बू कह लें या मम्मी का प्यार... बड़ा अच्छा होता था वो सब, उस वक्त तो ये सब नॉर्मल सा लगता था मतलब स्पेशल नहीं पर अब जब काफी दूर हूं और शायद ही वो ममता की छांव मिले तो अच्छा लगता है, याद आती है सारी बातें।
बिना जिम्मेवारियों वाले दिन... आजादी का अहसास। सुबह तो उस वक्त भी उठती थी मैं... पढ़ाई की जिम्मेवारी भी थी। पर एक अलग सी गंध थी जो आज अभी लिखते वक्त भी मेरे नथुनों में समा सी गयी हैं।
अभी के मुकाबले इतनी सुविधाएं नहीं थी न इतना बड़ा घर था पर खुशियां ही खुशियां थीं। छोटे भाई बहन का साथ था... यही बहुत था। सुबह की धूप एक ही कमरे में आती थी वो भी छोटी सी खिड़की से, आज हमारे बड़े घर की गैलरी में सुबह की धूप खूब अच्छे से आती है पर वो पहले वाला सुबह का रूप ही मिस करती हूं आज भी।
Wednesday, July 8, 2015
किससे बात करूं...
आज सुबह से इतना अच्छा मौसम... बादलों से घिरा आसमान... सूरज का तो पता नहीं कहीं... । पर मन पता नहीं क्यों अजीब सा हो रहा सोचा कहीं किसी से बात कर लूं तो शायद अच्छा महसूस हो। फोनबुक पर कंटैक्ट्स देखने का सिलसिला शुरू हुआ।
किससे बात करूं..ऊं ऊं ऊं इससे... नहीं नहीं इससे अरे नहीं यह अपना गाना शुरू कर देगी किससे करूं कोई ऐसा दिखा नहीं जो हंस कर शायद बात कर ले और मेरा मूड सही हो जाए।
सोचते सोचते पता ही नहीं लगा कितनी देर से ट्रैफिक में खड़ी हूं। दिल्ली का तो हाल ही बुरा है जरा सी बारिश हुई नहीं की जाम ही जाम। सोच-सोच के और हलकान हो गयी। 10 मिनट का रास्ता आज घंटे भर का बन गया है।
अचानक से एक छवि जेहन में उतरी और तय कर लिया अभी इससे ही बात करूंगी मेरा मूड तो अच्छा होगा ही हंस भी लूंगी थोड़ा। साथ ही चिंता भी कि पता नहीं बात करने का उसका मूड हो न हो।
फोन मिलाया तो बिजी...। फिर आॅफिस के काम में व्यास्ता हो गयी। दिल में भारीपन सा महसूस होता रहा। अचानक फोन की घंटी बजी... स्क्रीन पर नंबर और नाम देख दिल खुश हो गया।
रिसीव करते ही आवाज सुनी तो बोला आज मूड ठीक नहीं जरा ट्यूलिप से बात करा दो... अरे मैं बताना तो भूल ही गयी ट्यूलिप के बारे में। 2 साल की नन्हीं सी गुड़िया है... मेरी भतीजी। हाल ही में एक महीने रह कर गयी है हमारे साथ, शायद इसलिए वो बातें भी कर लेती है हमसे। मीठी सी बातें होतीं हैं उसकी, पूरा वाक्य तो बोलती नहीं वो, हां कुछ शब्द जरूर बोलती है।
बात हुई उससे थोड़ी सी ही क्यों्कि वह अपने खिलौनों में बिजी थी। पर मन अच्छा हो गया उसकी मीठी सी आवाज सुनकर। उसकी मम्मी भी इसमें उसकी मदद कर रही थी जैसे चेयर बोलो, म्या ऊं बोलो.... love u beta... god bless u.
Wednesday, April 15, 2015
उलझनें और कशमकश क्यूं...
Saturday, April 11, 2015
गुम हो गए हैं बेशुमार तारे...
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