for silent visitors

Monday, December 19, 2011

गुलाबी नगरी की सैर



चलना है जयपुर, आपको तो पता ही है घूमने में मेरा कितना मन लगता है... लेकिन अभी इस वक्त जाना ठीक रहेगा घर में मेहमान... मन बुझ गया। इतने दिनों बाद तो ये मौका मिला लास्ट टाइम हम मनाली गए थे उसके बाद तो... कहीं जा ही नहीं पाए।
सब मैं मैनेज कर लूंगा तुम बोलो चलना है या नहीं... ठीक है चलूंगी।
मन तो खुश था पर जाहिर नहीं करना चाहती थी अपनी खुशी, कहीं कोई बाधा न आ जाए इस खुशी में। लग रहा था जल्दी रात के बारह बजे और हम उस गुलाबी नगरी के लिए निकल जाएं। आखिर हां-ना के बीच हम निकल ही आए घर से। मेरा बेटा इतना खुश... घुमक्कड़ तो ऐसा है जैसे पूर्वजन्म में इब्नेबतूता रहा हो।
सुन तो बहुत रखा था इस शहर के बारे में देखना आज नसीब होगा सोच के दिल अजीब सी खुशी से भर गया। नींद में जैसे ठोकर लगी... आंख खुली तो इशारा किया देखो, खिड़की से बाहर ओह अरावली की पहाडिय़ां दिख रही थी बस की खिड़की से ऐसा लग रहा था जैसे जयपुर को गोद में हो मुस्कुराहट आ गई चेहरे पर नया शहर वो भी ऐसा ऐतिहासिक। मतलब मैं पहुंच ही गई पिंक सिटी। जयपुर की सुबह अच्छी लग रही थी।
शाम को चोखी ढाणी का प्रोग्राम था पूरी तरह ग्रामीण परिवेश बाजरे की रोटी मिट्टी के चूल्हे पर पकाती एक राजस्थानी महिला इतने प्यार से परोसती है कि बस दिल तो ऐसे ही भर जाता है कहीं जादू का खेल कहीं झूला और तो और राजस्थान के पारंपरिक ड्रेसेज में डांस करती लड़कियां।
उसके बाद दूसरे दिन आमेर का किला ओहो ऐसी बातें इस किले के बारे में कि लगता है उस जमाने में भी क्या लोग हुआ करते थे। महाराजा मान सिंह और उसकी रानियों की कहानी। उनकी खूबसूरती रहने सहने का तरीका कितनी पर्देदारी । इस किले में एक ऐसा सुरंग जो पता नहीं राजा ने किस उद्देश्य से बनवाया होगा। कोई आकर सारी कहानी बता दे उसमें कोई शायद न लगाए... ऐसा जी करता है मेरा।

2 comments:

  1. क्यों खूबसूरत लगा ना मेरा शहर ?

    :-)
    माही

    ReplyDelete