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Saturday, December 24, 2011
गुस्सा फूटा आज...
अपने कदमों की आहटें आज पता चली...। एक अच्छा अनुभव लगा कि हां... कुछ किया।
मैं काफी इंट्रोवर्ट टाइप हूं जब तक मुसीबत बहुत बड़ी न हो आलसी हो पड़ी रहती हूं। पर आज पता नहीं क्या हो गया था मुझे। शायद उस लेडी के सपोर्ट से प्रोत्साहन मिला।
हुआ यूं कि आज आफिस के लिए देर हो रही थी... मन में आ रहा था कि पता नहीं आज नोएडा जाने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने पड़ेंगे। एक तो शनिवार है वैसे ही कम बसें मिलती हैं। तभी बस स्टॉप पर उप्र परिवहन की बस दिखी जो धौला कुआं से नोएडा सेक्टर 62 तक के लिए आती है। इस बस को देखकर भागी। मन ही मन शनिचर महाराज को धन्यवाद कहा। बता दूं कि शनि महाराज मुझपर काफी कुपित रहते हैं।
महारानी बाग स्टॉप पर रुकते ही एक प्राइवेट बस वाला हेकड़ी दिखाता हुआ मेरी बस में चढ़ा और ड्राइवर पर चढ बैठा। इस वक्त कैसे... चलो अब सवारी बैठा ली है तो ठीक आगे बढ़ो लेकिन सेक्टर 12 पर उतार देना।
कंडक्टर ने टिकट काट कर मेरे हाथ में दिया कि सेक्टर 12 तक ही जाएगी बस। मैंने कहा कि फिर बोर्ड क्यों लगाया है 62 का... इतना बोल चुप हो गई मैं। परंतु मेरे पीछे बैठी महिला ने मुझसे ज्यादा बातें सुनाई। उसके बाद वह भी शांत हो बैठ गई।
थोड़ी देर तक मैं अपने मन में सोचती रही कब तक ऐसा चलेगा। और गुस्से से भर गया मेरा मन ।
स्साले चूडिय़ां क्यों नहीं पहन लेते तुम लोग। फेंक दूंगी बोर्ड उठा के... आज 62 तक जाओगे किसी भी हाल में वरना देखती हूं तुम लोगों को...। इसके अलावा भी बहुत कुछ।
पीछे से उस लेडी ने मुझे टोका कंपलेंट करूं फोन पर...मैंने कहा कर दो उसने फोन मिलाया पर किसी ने उठाया नहीं फिर उसने कहा पुलिस को बुलाउंगी ।
तभी कंडक्टर ने कहा खाली करो बस यहां से डिपो जाएगी मैंने सोचा उतर जाऊंगी पर इसका शीशा तो तोड़ ही दूंगी आज।
अचानक उस महिला ने उठकर खिड़की से हाथ निकाला और पुलिस पुलिस चिल्लाने लगी। बस का ड्राइवर सकते में करे तो क्या करे...। फिर बोला शांत हो जाइए आप लोगों को 62 तक छोड़ देता हूं। आखिरकार हम जीत गए थे।
फोर्टिस के पास जब वह उतरने लगी तो मैं गई और उससे हाथ मिलाया।
यहां तो बस दो थे तब ऐसा हुआ सब एकजुट हो जाएं तो दुनिया बदल जाए।
अब सोच रही हूं वो मैं ही थी जिसने इतना कुछ कहा... क्योंकि मैं ऐसे कभी बोलती नहीं :)
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kabhi kabhi gussa sehat k liye accha hota hai :-)
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