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Monday, November 7, 2011

...और कितने समझौते


समझौता एक बड़ा सवाल बन गया है, कितना भी भागो पीछे पीछे आ जाता है... मानो कह रहा हो कि नहीं छोडूंगा तुम्हारा साथ जब तक जिंदगी रहेगी।
एक ही शर्त पर छूटेगा हाथ जब तुम जिंदगी हार जाओ...। इतना जिद्दी तो मेरा ढाई साल का मासूम बेटा भी नहीं जिसे मैंने खुद से अलग किया है इसी समझौते को ढो रही हूं। फोन पर पूछा उसने कहां हो मम्मा...? आंख भर आई मेरी अब तक सुना था बस की कलेजा मुंह को आता है पर सच... अब जाकर महसूस हुआ है। बड़ी बेचैनी महसूस होती है लगता है बहुत बड़ी गलती हो गई जो उसे छोड़ आई।
जिंदगी कभी कभी कितना मजबूर कर देती है शायद समझौते पर ही जिंदगी चलती है नहीं तो पता नहीं हर कदम पर कितना बवाल हो।
पता नहीं ये सब के साथ होता है या केवल मेरे साथ ही हो रहा है...। बहुत बड़ा सवाल मुंह बाये सामने खड़ा है अभी तो आधी ही जिंदगी काटी है पता नहीं कितने और समझौते आगे मेरा इंतजार कर रहे हैं?

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