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Sunday, October 16, 2011
काश तुम आ जाओ मनाने...
क्या ये रिश्ते इतने आसान है कि आपके बोलने से साथ छूट जाएगा
मुझे पता है कि आपको मैं पसंद नहीं
पर जो सात फेरों का बंधन है वह सिर्फ कहने को नहीं वो दिल में गहरे समा जाता है चाहे आप या मैं कितना भी इनकार करें पर यह हो ही नहीं सकता कि हम दोनों के बीच दुश्मनी हो...
जरा जरा सी बात पर गुस्सा हो जाना तीखी बातें कहना नफरत भरा चेहरा पर दिल में कहीं एक छुपी तमन्ना कि तुम एक बार आ जाओ मेरे पास...
माफ तो हर बार कर देते हैं आप
पर इस बार हिम्मत नहीं हो रही बार-बार वही नफरत दिखता है चेहरे पर
चली जाओ छोड़कर मुझे पर क्या आप रह पाएंगे मेरे बिना... चाहे मैं कितनी ही गंवार, बेकार क्यों न हूं पर ये तो मुझे भी पता है कि हम दोनों एक दूसरे के कितने करीब हैं कि अब एक दूजे के बिना जी नहीं पाएंगे और अगर जिएंगे भी तो इसी आस में कि काश तुम आ जाओ मनाने...
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इस बार आप ही मना लो जाकर....
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