राखी का बंधन ही कुछ ऐसा है.. कि भाई की याद बरबस ही आ जाती है। बचपन में कभी सोचा भी न था कि ऐसे लड़ते-झगड़ते इतनी दूर चली जाऊंगी लड़ना तो दूर साल में एक दिन जिसपर उसका पूरी तरह हक बनता है उस त्यौहार पर भी मैं उसके पास नहीं जाऊंगी। भाई का घर जिस पर कभी मैं अपना और उसका बराबर का हक समझती वहां जाना इतना मुश्किल होगा की बस
हेलो दीदी हां भाई राखी मिली?नहीं अभी तक तो नहीं। किस कुरियर से भेजा है। कोई नहीं रुक जाओ मैं पता करती हूं फिर फोन कट..।मन उदास हो गया कल राखी का त्यौहार है और आज शाम ४.४५ तक उसे राखी नहीं मिली है। अभी उससे बात हुई उसकी भी आवाज में उदासी है।
for silent visitors
Monday, August 23, 2010
Tuesday, June 15, 2010
चंदा मामा

चंदा मामा आ जाईए मुन्ने को सुला जाईए।
मुन्ना मेरा सो जाएगा, सपनों में खो जाएगा।।
निंदिया रानी झूला झूलाएगी, मम्मा उसको लोरी सुनाएगी।
सपने में परियां आएंगी अपने देश की सैर कराएगी।।
बचपन में मैं भी ऐसे गाने सुना करती थी अपनी मम्मी, मौसी और नानी के मुंह से
चंदा मामा दूर के, पुआ पकाए गुड़ के..
ऐसे ही एक दिन अपने बेटे को सुलाते हुए ऊपर लिखी हुई लाइनें अपने आप बन गई तो दिल ने कहा कि आपसे भी शेयर कर लूं। बताईएगा जरूर की कैसी लगी।
मुन्ना मेरा सो जाएगा, सपनों में खो जाएगा।।
निंदिया रानी झूला झूलाएगी, मम्मा उसको लोरी सुनाएगी।
सपने में परियां आएंगी अपने देश की सैर कराएगी।।
बचपन में मैं भी ऐसे गाने सुना करती थी अपनी मम्मी, मौसी और नानी के मुंह से
चंदा मामा दूर के, पुआ पकाए गुड़ के..
ऐसे ही एक दिन अपने बेटे को सुलाते हुए ऊपर लिखी हुई लाइनें अपने आप बन गई तो दिल ने कहा कि आपसे भी शेयर कर लूं। बताईएगा जरूर की कैसी लगी।
Tuesday, March 16, 2010
नए और पुराने पत्ते
आज अचानक बस की खिड़की से सड़क किनारे खड़े पेड़ों पर नजर चली गई। नए-नए कोमल पत्ते से भरे लेकिन कई ऐसे पेड़ भी थे जिन पर वही पुराने धूल से भरे पत्ते थे वे मुझे उदास से लगे। हो सकता है यह मेरे मन का वहम हो..और कई ऐसे भी थे जिनके पुराने पत्ते तो गिर गए थे पर अभी नई और कोमल पत्तियों के इंतजार में वे खड़े हैं।
खैर जल्दी ही ये कोमल पत्ते भी धूल की आंधियों से पुराने और गंदले से हो जाएंगे। अभी गर्मी आने को ही है धूल भरी गर्म हवाएं इन पर परत दर परत धूल जमा कर देंगी और फिर इन्हें इंतजार होगा अगले साल का जब इन पर फिर से नई पत्तियों का आगमन होगा..।
खैर जल्दी ही ये कोमल पत्ते भी धूल की आंधियों से पुराने और गंदले से हो जाएंगे। अभी गर्मी आने को ही है धूल भरी गर्म हवाएं इन पर परत दर परत धूल जमा कर देंगी और फिर इन्हें इंतजार होगा अगले साल का जब इन पर फिर से नई पत्तियों का आगमन होगा..।
Monday, March 8, 2010
एक दिन हमारा और बाकी का..!
आज लोग अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। लोग क्या औरतें मना रही हैं अपना एक दिन। क्यों हमारा एक दिन और बाकी के दिन क्या पुरुषों के लिए। हम औरतें भी न खुद को दया का पात्र बना लेती हैं।
Friday, March 5, 2010
खुद ही मारी है कुल्हाड़ी
सच कभी-कभी लगता है कि हम महिलाओं ने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। हम चाहती क्या हैं..
पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली महिलाएं चाहे कितना भी उनसे आगे निकल जाएं पर हमारी पुरानी जिम्मेदारियां कभी पीछा नहीं छोड़ती..। बिना मतलब ही हम इस होड़ मे लगे हैं कि हम उनसे कम नहीं क्यूं भला..।
कुछ दिनों पहले हमारे घर एक बुजुर्ग महिला रिश्तेदार का आना हुआ। उन्होंने मुझे आफिस और घर दोनों जगह संभालने कि बात पर कहा कि हमने ही आराम की जिंदगी गुजारी है तुमलोग पता नहीं कैसे दिन भर आफिस कर फिर घर भी संभाल लेते हो। हम तो घर में आराम से रहते थे कोई भाग दौड़ नहीं और पति के पैसे को आराम से खर्च करते थे।
लेकिन मुझे कभी यह भी अहसास होता है कि मैं भी कुछ हूं अगर पुरुष अपना वर्चस्व जता सकता है तो महिला भी अपना अस्तित्व जता सकती है।
मैं भी आफिस जाती हूं और मेरे पति भी पर फर्क देखिए वो आते हैं उनकी मां कहेंगी अरे कैसा थका हुआ है पानी लाओ, नाश्ता लाओ.. वगैरह।
और जब मैं पहुंचती हूं तो
आज बेटा बहुत रोया है.. कामवाली नहीं आयी है.. पानी नहीं चला है.. इसके कपड़े कहां है खाना कब बनेगा देर हो रही है..।
पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली महिलाएं चाहे कितना भी उनसे आगे निकल जाएं पर हमारी पुरानी जिम्मेदारियां कभी पीछा नहीं छोड़ती..। बिना मतलब ही हम इस होड़ मे लगे हैं कि हम उनसे कम नहीं क्यूं भला..।
कुछ दिनों पहले हमारे घर एक बुजुर्ग महिला रिश्तेदार का आना हुआ। उन्होंने मुझे आफिस और घर दोनों जगह संभालने कि बात पर कहा कि हमने ही आराम की जिंदगी गुजारी है तुमलोग पता नहीं कैसे दिन भर आफिस कर फिर घर भी संभाल लेते हो। हम तो घर में आराम से रहते थे कोई भाग दौड़ नहीं और पति के पैसे को आराम से खर्च करते थे।
लेकिन मुझे कभी यह भी अहसास होता है कि मैं भी कुछ हूं अगर पुरुष अपना वर्चस्व जता सकता है तो महिला भी अपना अस्तित्व जता सकती है।
मैं भी आफिस जाती हूं और मेरे पति भी पर फर्क देखिए वो आते हैं उनकी मां कहेंगी अरे कैसा थका हुआ है पानी लाओ, नाश्ता लाओ.. वगैरह।
और जब मैं पहुंचती हूं तो
आज बेटा बहुत रोया है.. कामवाली नहीं आयी है.. पानी नहीं चला है.. इसके कपड़े कहां है खाना कब बनेगा देर हो रही है..।
Friday, February 26, 2010
..यहां से पंछी बन के उड़ जाऊं
तो आ गई होली। बाजार में तरह तरह के रंग बिखर गए हैं। कल देखा छोटी, फिर उससे बड़ी, उससे भी बड़ी मतलब हर साइज की पिचकारी।
बचपन में मैं रंगों से काफी डरती थी। अगर कोई मेरी मम्मी को रंग लगाता तो मैं और मेरा भाई इतना रोते मेरा भाई तो रोने के साथ एक डंडा लेकर मारने भी दौड़ता। अब वह खुद इतनी होली खेलता है। और मेरी तो बात ही मत कीजिए रंगों से स्कीन एलर्जी लेकिन ससुराल वाले कहां मानते हैं मतलब पूरी तरह रंगों से सराबोर हो जाती हूं।
पर आज बचपन की होली बड़ी याद आ रही है दिल कर रहा है फिर से बचपन में लौट जाऊं। पापा के साथ हम सुबह सुबह ब् बजे की ट्रेन से गांव के लिए निकल पड़ते थे और वहां दादी हमारे इंतजार में बैठी रहती थी जब हम पहुचते थे तभी उनका पुआ बनना शुरू होता था मानो हम न हो तो उनकी होली ही ना हो.. अब वो सब एक सुहाना सपना या अच्छी यादों तक ही सीमित है बहुत पीछे छूटा उनका साथ। ना ट्रेन में ले जानो के लिए पापा हैं और ना गांव पर बेसब्री से इंतजार करती दादी की आंखें..।
बचपन में मैं रंगों से काफी डरती थी। अगर कोई मेरी मम्मी को रंग लगाता तो मैं और मेरा भाई इतना रोते मेरा भाई तो रोने के साथ एक डंडा लेकर मारने भी दौड़ता। अब वह खुद इतनी होली खेलता है। और मेरी तो बात ही मत कीजिए रंगों से स्कीन एलर्जी लेकिन ससुराल वाले कहां मानते हैं मतलब पूरी तरह रंगों से सराबोर हो जाती हूं।
पर आज बचपन की होली बड़ी याद आ रही है दिल कर रहा है फिर से बचपन में लौट जाऊं। पापा के साथ हम सुबह सुबह ब् बजे की ट्रेन से गांव के लिए निकल पड़ते थे और वहां दादी हमारे इंतजार में बैठी रहती थी जब हम पहुचते थे तभी उनका पुआ बनना शुरू होता था मानो हम न हो तो उनकी होली ही ना हो.. अब वो सब एक सुहाना सपना या अच्छी यादों तक ही सीमित है बहुत पीछे छूटा उनका साथ। ना ट्रेन में ले जानो के लिए पापा हैं और ना गांव पर बेसब्री से इंतजार करती दादी की आंखें..।
Saturday, February 20, 2010
Thursday, February 18, 2010
शादी समझौता है..
आज सुबह-सुबह एक बहस से सामना हो गया। सामान्यतया मैं बहस से दूर ही रहना पसंद करती हूं क्योंकि मेरा मानना है कि बहस बुद्धिजीवियों का काम है और मैं खुद को बुद्धिजीवी तो कतई नहीं मानती। पर इसे सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य मैं भी इस बहस में शामिल हो गई।
बहस का मुद्दा शादी और प्यार था। हमारी एक कलीग का कहना था कि प्यार एक अहसास है जबकि शादी समझौता है और जो सबसे ज्यादा समझौता करता है उसकी शादी उतनी कामयाब होती है। पर मैं भी बोल पड़ी [वैसे मैं इन मामलों में उतनी परिपक्व नहीं हूं] कि नहीं आप ऐसा नहीं कह सकते हां ये जरूर है कि शादी समझौते से शुरु होती है पर कुछ ही दिनों बाद वो प्यार का एक अटूट बंधन बन जाती है। और ऐसा नहीं कि प्यार करके शादी करने पर आपको समझौते नहीं करने पड़ते! खैर इस बहस पर कितने व्यंग्य भी हुए। आपको यह बताती चलूं कि उनकी भी अरेंज्ड मैरिज है..!
बहस का मुद्दा शादी और प्यार था। हमारी एक कलीग का कहना था कि प्यार एक अहसास है जबकि शादी समझौता है और जो सबसे ज्यादा समझौता करता है उसकी शादी उतनी कामयाब होती है। पर मैं भी बोल पड़ी [वैसे मैं इन मामलों में उतनी परिपक्व नहीं हूं] कि नहीं आप ऐसा नहीं कह सकते हां ये जरूर है कि शादी समझौते से शुरु होती है पर कुछ ही दिनों बाद वो प्यार का एक अटूट बंधन बन जाती है। और ऐसा नहीं कि प्यार करके शादी करने पर आपको समझौते नहीं करने पड़ते! खैर इस बहस पर कितने व्यंग्य भी हुए। आपको यह बताती चलूं कि उनकी भी अरेंज्ड मैरिज है..!
Saturday, February 13, 2010
कुछ कहना है मुझे
काफी दिनों से सोच रही हूं कि अपने दिल की बात किस को बताई जाए पर कोई ऐसा नहीं दिखता जिसे बताऊं तो सोचा ब्लाग का ही सहारा ले लेती हूं।
ऐसा होता है न कि कभी कोई आपको सुनना न चाहे और आप किसी बात को लेकर घुट रही हो तो किसी को बताने से मन हल्का हो जाता है बस यही प्रॉब्लम मेरे साथ भी हो रही थी।
ब्लाग पर अपने दिल की बात डाल दूंगी जिसका मन हो पढे जिसका न हो न पढे।
बस बना डाला अपना अकाउंट पर आज लिखने बैठी हूं क्योंकि खुद को बड़ा अकेला महसूस कर रही हूं। कोई आस-पास नहीं दिखता आप लोगों को भी लगता है क्या कभी ऐसा क्या करते हैं तब आप..। प्लीज मुझे बताएं
ऐसा होता है न कि कभी कोई आपको सुनना न चाहे और आप किसी बात को लेकर घुट रही हो तो किसी को बताने से मन हल्का हो जाता है बस यही प्रॉब्लम मेरे साथ भी हो रही थी।
ब्लाग पर अपने दिल की बात डाल दूंगी जिसका मन हो पढे जिसका न हो न पढे।
बस बना डाला अपना अकाउंट पर आज लिखने बैठी हूं क्योंकि खुद को बड़ा अकेला महसूस कर रही हूं। कोई आस-पास नहीं दिखता आप लोगों को भी लगता है क्या कभी ऐसा क्या करते हैं तब आप..। प्लीज मुझे बताएं
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