आज अचानक बस की खिड़की से सड़क किनारे खड़े पेड़ों पर नजर चली गई। नए-नए कोमल पत्ते से भरे लेकिन कई ऐसे पेड़ भी थे जिन पर वही पुराने धूल से भरे पत्ते थे वे मुझे उदास से लगे। हो सकता है यह मेरे मन का वहम हो..और कई ऐसे भी थे जिनके पुराने पत्ते तो गिर गए थे पर अभी नई और कोमल पत्तियों के इंतजार में वे खड़े हैं।
खैर जल्दी ही ये कोमल पत्ते भी धूल की आंधियों से पुराने और गंदले से हो जाएंगे। अभी गर्मी आने को ही है धूल भरी गर्म हवाएं इन पर परत दर परत धूल जमा कर देंगी और फिर इन्हें इंतजार होगा अगले साल का जब इन पर फिर से नई पत्तियों का आगमन होगा..।
नया पुराना सब यंत्रवत चलता रहता है...!
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