सच कभी-कभी लगता है कि हम महिलाओं ने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। हम चाहती क्या हैं..
पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली महिलाएं चाहे कितना भी उनसे आगे निकल जाएं पर हमारी पुरानी जिम्मेदारियां कभी पीछा नहीं छोड़ती..। बिना मतलब ही हम इस होड़ मे लगे हैं कि हम उनसे कम नहीं क्यूं भला..।
कुछ दिनों पहले हमारे घर एक बुजुर्ग महिला रिश्तेदार का आना हुआ। उन्होंने मुझे आफिस और घर दोनों जगह संभालने कि बात पर कहा कि हमने ही आराम की जिंदगी गुजारी है तुमलोग पता नहीं कैसे दिन भर आफिस कर फिर घर भी संभाल लेते हो। हम तो घर में आराम से रहते थे कोई भाग दौड़ नहीं और पति के पैसे को आराम से खर्च करते थे।
लेकिन मुझे कभी यह भी अहसास होता है कि मैं भी कुछ हूं अगर पुरुष अपना वर्चस्व जता सकता है तो महिला भी अपना अस्तित्व जता सकती है।
मैं भी आफिस जाती हूं और मेरे पति भी पर फर्क देखिए वो आते हैं उनकी मां कहेंगी अरे कैसा थका हुआ है पानी लाओ, नाश्ता लाओ.. वगैरह।
और जब मैं पहुंचती हूं तो
आज बेटा बहुत रोया है.. कामवाली नहीं आयी है.. पानी नहीं चला है.. इसके कपड़े कहां है खाना कब बनेगा देर हो रही है..।
Wo subah kabhi to aayegi...
ReplyDeleteIs silsileko rok to hamhi laga sakte hain!
ReplyDeleteYah silsila jaree rahega...rok to hamhi laga sakte hain!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
Achchhaa likha hai apne---har ghar men aisee sthitiyan dikhatee hain.....hindee blog jagat men apka svagat hai.
ReplyDeleteExcellent .Go ahead.
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