राखी का बंधन ही कुछ ऐसा है.. कि भाई की याद बरबस ही आ जाती है। बचपन में कभी सोचा भी न था कि ऐसे लड़ते-झगड़ते इतनी दूर चली जाऊंगी लड़ना तो दूर साल में एक दिन जिसपर उसका पूरी तरह हक बनता है उस त्यौहार पर भी मैं उसके पास नहीं जाऊंगी। भाई का घर जिस पर कभी मैं अपना और उसका बराबर का हक समझती वहां जाना इतना मुश्किल होगा की बस
हेलो दीदी हां भाई राखी मिली?नहीं अभी तक तो नहीं। किस कुरियर से भेजा है। कोई नहीं रुक जाओ मैं पता करती हूं फिर फोन कट..।मन उदास हो गया कल राखी का त्यौहार है और आज शाम ४.४५ तक उसे राखी नहीं मिली है। अभी उससे बात हुई उसकी भी आवाज में उदासी है।
समय कैसे बदल जाता है न...!
ReplyDeletehan... aur kafi painful
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