कल रात बरामदे में खड़ी हुई तो अचानक से नजर आसमां पर टिक गई। कुछ देर पहले जहां बादल ही बादल नजर आ रहे थे अब वहां बिल्कुल साफ और धुला धुला आसमान नजर आ रहा था। पूर्णिमा के एक दिन पहले की रात में चंद्रमा की सफेद और दूधिया रोशनी थी फिर अचानक मेरी नजरें तारों को खोजने लगी पर एक भी तारा नहीं ये क्या... चांद के पास जो हमेशा एक सितारा हुआ करता था वो भी नहीं। कहां गए सब के सब तभी मेरा ढाई साल का बेटा जो मेरे कंधे पर सिर टिका सोने की कोशिश कर रहा था बोला ममा चांद मां गोल गोल हैं और टवींकल स्टार कहां है...
ऐसा लगा जैसे वो भी मेरी तरह आसमां में तारे ही खोज रहा था
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