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Saturday, April 11, 2015

गुम हो गए हैं बेशुमार तारे...


इतना है तुमसे प्याेर मुझे मेरे राजदार, जितने की आसमां पर हैं तारे बेशुमार... कल सुबह ये खूबसूरत गाना रेडियो पर सुना और सोचने लगी बेशुमार तारे देखे तो जमाना हो गया। अब आसमान में इतने तारे कहां रह गए।
एक तो खुला आसमां देखने को नहीं मिलता दूसरा किसी के पास इसके लिए वक्त भी नहीं, पर कल गाने की पंक्ति जैसे मेरे जेहन में बस गयी थी, रात को जब घर में सब सो गए तो मैंने बालकनी से नजर आने वाले खुले आसमां की तरफ अपनी नजरें दौड़ाईं, बेशुमार का मतलब जो निकलता है उस तरह नहीं दिखे तारे जबकि बादल भी कहीं नहीं। मैंने सोचा हो सकता है यहां से ठीक से नजर न आ रहा हो, दूसरी वाली बालकनी से झांका पर वहां भी निराशा... कहीं भी बेशुमार तारे नजर नहीं आए। ऐसा क्याब हो गया है, कहां चले गए सब तारे... या हमारे आपाधापी की जिंदगी को देखते हुए दुखी हो गए हैं ये टिम टिम करते तारे... पता नहीं बचपन में गर्मियों के मौसम में नानी के यहां खुले आंगन में नानी के साथ चारपाई पर सोते हुए इन तारों को देखा करती थी, और नानी हमेशा बोलती थी वो सतभइया (सप्तचर्षि) तारे को मत देखना, अपशगुन होता है। पर कल आसमां में सबसे पहले वही दिखा क्यों कि बाकी सब न जाने कहां खो गए हैं...।

3 comments:

  1. Aksar Yuh hota hai zindagi mein, bheed mein nikalte hai him aur much mashgul note hai khud mein kee jab peechein mud kar dekhte hai to koi nahi hota..to lagta hai shayad humse naraz home Tim timate so taare kahin chhup Gaye hai

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    1. है न ऐसा ही कुछ... छिप ही गए हैं ये तारे

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  2. स्‍वागत है आपका...

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