कुछ कहना है...
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Friday, October 17, 2025
रिश्तों को चलाने में भी दिमाग
जब रिश्ते में नई-नई आई थी, उस वक्त इतना दिमाग ही नहीं था। कोई मेरे साथ चतुराई से काम कर रहा है, या कितनी चालाकी भरे बोल अपने मुंह से निकाल रहा है। लेकिन अब करीब दो दशक बाद समझ आ रहा और हैरानी हो रही कि मैं कैसी अबोध थी। पच्चीस साल की उम्र में इतनी नासमझी...।
ये दोष शायद मेरे मम्मी पापा का था। जिन्होंने बड़े नाजों से पाला। दुनिया की चालाकियों से बचाकर... लेकिन जिंदगी भर कैसे बचाएंगे। वो भी एक बेटी को... जिसे शादी के बाद दूसरे घर चले जाना है। दिन-रात अनजान लोगों के बीच। जहां हर नजर बस उसकी कमियां गिनने में लगी है। पहनने नहीं आता, खाने की शौकीन नहीं, गहनों कपड़ों से लेना देना नहीं। लापरवाह है पूरी। यहां तक कि वॉशरूम में कितना समय लगाती है और नहाने में केवल पानी गिरने की आवाज आती है।
कपड़ों में साबुन दिया करो।
शादी से पहले मम्मी ने कपड़े धोए या मौसी ने, खुद तो कभी परवाह ही नहीं रही।
अब घर की सफाई से लेकर दो बच्चों के कपड़े भी संवार कर रखने की जिम्मेदारी। ऑफिस में कलीग्स और बॉस की चिकचिक घर में तो पूछो मत।
Tuesday, September 16, 2025
बढ़ती उम्र के साथ नए अहसास और जज्बात
केवल किशोरावस्था या यौवन की दहलीज पर नए अहसास नहीं होते। जीवन के चार दशक पार करने पर भी नए जज्बातों और अहसासों का मेला लगा रहता है। इस उम्र में भी उम्मीदें होती हैं, सुंदर और आकर्षक लगने की। लेकिन आंटी-अंकल कहकर दरकिनार कर देती है नई पीढ़ी।
सबसे पहले परिपक्व समझे जाने लगते हैं, आपसे किसी तरह की गलती की उम्मीद नहीं होती। हमेशा मैच्योर बने रहो, हर जगह हंसना नहीं। अपने से कम उम्र वालों के साथ हंसी-मजाक तो बिल्कुल नहीं करनी, लोग हल्के में लेते हैं। ऐसी न जाने कितनी ही सलाह, खासकर यदि कोई महिला हो।
इन्हें कोई ये बात क्यों नहीं समझाता कि बढ़ती उम्र के साथ इच्छाएं खत्म नहीं हो जातीं बल्कि और बढ़ती हैं। क्योंकि यही उम्र है जब बच्चों के लंच, होमवर्क और किचन की चिकचिक से छुटकारा मिलता है।
Tuesday, November 7, 2023
मम्मा की कलम से...
सुबह सात बजे से एम्स हॉस्पिटल और फिर सेंट्रल मार्केट का चक्कर लगाकर वापस आते हुए मेट्रो ट्रेन में पापा की गोद में निश्चिंत भाव से सो रहे तुम्हारे चेहरे को मैं देख रही थी। अचानक मंजिल पर पहुंचने के बाद स्कूटी पर बैठे पापा के पीछे तुम्हें बैठाने लगी तो तुम्हारे जूते से पापा की ब्लू शर्ट में काला गंदा लग गया, उसे हाथों से साफ तो कर दिया मैंने, लेकिन एक ख्याल मन में घुमड़ने लगा।
कल को जब मैं और तुम्हारे पापा बूढ़े हो जाएंगे और ऐसा कुछ हमसे हो जाएगा तो तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होगी इसपर। गुस्सा होगे और आगे से हमें अपने साथ बाहर लेकर नहीं जाओगे। ऐसा भी होगा कि हम थककर तुम्हारे या तुम्हारे दादा (Pragyan) के कंधे पर अपना सिर रखकर उसी निश्चिंतता को तलाशेंगे जो अभी तुमदोनों को दे रहे हैं।
फिलहाल तो ऐसे हालात हैं कि जिनके दो बेटे हैं- वो किस्तों में अपने मां बाप को रख रहे हैं- छह माह एक तो छह माह दूसरा।
ईश्वर ने साथ दिया तो हम दोनों यानि तुम्हारे मम्मी-पापा कभी भी तुम दोनों भाइयों से ज्यादा उम्मीदें नहीं रखेंगे और न ही तुम्हारे व्यक्तिगत मामले में दखल देंगे। जरूरी लगे तो अपनी सलाह दें दे। केवल तुमलोग हमें प्यार और सम्मान देना और कुछ नहीं चाहिए।
Monday, October 2, 2023
मेरी हर गलती को कैसे माफ कर देती हो मम्मी....
बचपन में बचाती थी, इसलिए जैसे ही आभास होता कि पापा डांटने वाले हैं, मम्मी के पीछे पहुंच जाती। डांटती मम्मी भी थी लेकिन तुरंत लाड़ जताने भी आ जाती थी।
आज खुद मम्मी बन गई हूं, लेकिन कहीं से कोई बोल दे, डांट दे, तो मम्मी की ही याद आ जाती है। ईश्वर उन्हें मेरे लिए सेहतमंद बनाए रखे। दुनिया में एक मम्मी ही तो है जिसे कुछ भी कह लो... डांट के बोल दो, फोन मत उठाओ, कभी सेकेंड भर में बोलो - मम्मी बिजी हूं, फ्री होकर फोन करती हूं। चाहे उस दिन मत ही करो फोन लेकिन वो सारी गलती भूल जाएंगी और फोन कर पूछेंगी क्या हाल...
Thursday, September 21, 2023
आधी आबादी को मिलेगा इस आरक्षण का फायदा...
कहने को तो प्रधानमंत्री ने महिलाओं के हक में कई फैसले लिए, कई अधिकार दिए। लेकिन क्या इसका फायदा आधी आबादी को मिल पा रहा है। पहले से ही ऐसा सुनती आई हूं कि विरोध या क्रांति के सुर या तो हाई क्लास या फिर लोअर क्लास में ही सुनाई दे सकता है। मिडिल क्लास तो न इधर के न उधर के। हां कुछ एक्सेप्शन हो सकतीं हैं इस क्लास में, लेकिन अधिकतर महिलाएं अपना सम्मान, मां बाप की प्रतिष्ठा, परिवार की भलाई सोचती रह जाती हैं। इससे भी न हुआ तो उनके उठते कदमों की बेड़ी उनके बच्चे बन जाते हैं। और ये जिंदगी भर अपनी आवाज उठा नहीं पातीं। अब आरक्षण मिलने के बाद भी हमारी आधी आबादी में से कितनी फीसद महिलाएं अपना सुर ऊंचा कर सकेंगी।
Wednesday, February 1, 2023
समझ में आने लगा है- "अनुभव" किसे कहते हैं
अब मैं भी कहती हूं यूं हीं धूप में सफेद नहीं हुए हैं मेरे बाल। चेहरे पर नासमझी और मासूमियत नहीं बल्कि दिखने लगी हैं समझ और अनुभव की लकीरें।
जिंदगी के सफर में अनुभव किसे कहते हैं, अब यह समझ में आने लगा है। हालात के साथ सामने वाला किस अंदाज में बदलता है इसके भी अनेकों उदाहरण मिल चुके हैं अब तक।
कोई फोन नहीं उठाता या फिर किस तरह प्रतिक्रिया देता है अब इसके पीछे का मतलब तुरंत समझ आ जाता है। सभी की उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करते-करते थकान सी महसूस होने लगी है। अब तो सीधा दिमाग में आता है् ...में जाओ।
40 के करीब पहुंच चुकी हूं और एक निश्छल प्यार अपनी सगी मां का ही दिखता है जिसमें कोई स्वार्थ नहीं, न किसी तरह का छल और न ही दिखावा। कितनी ही झल्लाहट के साथ बोल दूं वो कभी नाराज नहीं होती न ही दिल से उन बातों को लगाती है। उल्टा उनके दिल में मेरे लिए सहानुभूति आती है कुछ देर बाद फिर फोन कर पूछती हैं सब ठीक है न। भगवान उनको सेहतमंद रखे और उनका आशीर्वाद हम भाई बहनों पर सदैव बनाए रखे।
Tuesday, December 3, 2019
इस तरह कोई अपना गया होता तो...
किसी का ट्वीट आज सुबह पढ़ा। इस ट्वीट को पढ़कर ऐसा लगा कि कानून बनाने वालों के दिमाग में ये बातें क्यों नहीं आती हैं। बड़ा अहम संदेश देने वाले इस ट्वीट में लिखा था- 6 माह, 2 साल, 7 साल, 10 साल, 17 साल की मासूम बच्चियों से दुष्कर्म होता है तो दोषियों को सजा देने वक्त उनके उम्र का ख्याल क्यों, जब उन्हें दुष्कर्म करने आता है तब तो वे वाकई मैच्योर होंगे फिर सजा के हकदार क्यों नहीं। सऊदी अरब में इस कुकर्म की सजा है- सिर कलम करना।
आज ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए हर उस पापी और दुष्कर्मी को जो ऐसा करते वक्त तनिक भी अपनी मां बहन का चेहरा नहीं याद करता।
कल्पाना करके सिहर जाती हूं मैं। किसी अपरिचित का रास्ते में, बस-ऑटो में छू जाना मुझे इरिटेट कर जाता है कैसे उस हैवानियत में शरीर को तार-तार करने करने दे सकती है कोई लड़की... उफ भगवान कहां होते हो तुम उस वक्त...।
Tuesday, August 28, 2018
अनुभवों का बखान
सोचा कि आज अपने अनुभवों की बखिया उधेरूं....। आज इस बात का सौ फीसद दावा करती हूं कि मैंने अपने अनुभवों से काफी कुछ सीखा है। कई कमियां हैं मुझमें। सबसे बड़ी कमी है लोगों की पहचान करनी नहीं आती। दूसरा मैं बड़ी वाली ‘स्लोी प्रोसेसर’ हूं क्योंबकि जवाब तो आता है पर देर से।
बता दूं कि ‘स्लो‘ प्रोसेसर’ शब्द की एक अलग कहानी है मेरे पास... किसी दोस्त ने ये उपाधि दी थी मुझे। इसके अलावा अनगिनत कमियां भरी हैं मुझमें...। लोग कहते हैं मैं बदल गई हूं, उनके प्रति मेरा बिहेव काफी बदल गया है। इनसे मैं क्या कहूं क्या सफाई दूं... काश की उनसे कह पाती।
दरअसल, मैं बदली नहीं हूं अब जाकर उनकी वास्तविकता मेरे सामने आई है। मैं उन्हें पहचान गई हूं...। उनका झूठी हंसी, सहानुभूति, दिखावे का प्यार, नकली भरोसे के अंदर छिपा छलावा सबको मेरी नजरें अब ण्क्स रे मशीन की तरह देख रही है। पर डर लगता है कि कहीं इस कारण सच्चा प्यार और भरोसा भी मुझे नकली न लगने लगे।
मेरे साथ दिक्कत इस बात की है कि एक बार अगर कोई मेरी नजरों में गिरा फिर उससे हाय, हैलो तो दूर चेहरा देखना भी पसंद नहीं करती। पर ये कंडीशन और जगहों पर तो चल जाती है लेकिन फैमिली में... सब जानते हुए भी ऐसे लोगों के लिए दिल को मजबूत करना पड़ता है और जबरन उनका चेहरा देखना और रिश्तों को अहमियत देते हुए सम्मान करना मजबूरी हो गई है। कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है न इसके लिए अगर आप इसे पढ़ रहे हैं और बता सकते हैं तो प्लीज कमेंट में बताएं... इंतजार कर रही हूं।
Saturday, August 11, 2018
काश! कड़वी यादें बदल पाती मीठी यादों में...
कुछ लोगों के नाम से ही मुंह कसैला सा हो जाता है। उनसे जुड़ी कड़वी यादें दिमाग पर हथौड़े की तरह चोट करने लगती है। कल रात मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। हैं तो वो लोग काफी अपने लेकिन उनसे जुड़ी अच्छी़ यादें हैं ही नहीं मेरे रिकार्ड में कहीं भी।
नींद आंखों से कोसों दूर हो गई और वही सब दृश्यो सामने आने लगे। कानों में उनकी व्यंग्य वाली आवाजें गूंजने लगीं। कितनी भी कोशिश की कि उनकी अच्छी बातें याद करूं पर कुछ है ही नहीं। दिमाग को झटकार कर सोने की भी कोशिश की पर ‘न’। जिद्दी दिमाग में एक बार कीड़ा घुस गया तो फिर किसकी हिम्मत कि उसे निकाल-बाहर करे।
दिल ही नहीं करता ऐसे लोगों के लिए कुछ करने का... पर मजबूरी ऐसी है कि न उन्हें छोड़ते बनता है न ही उन्हें नकारते।
Tuesday, November 28, 2017
एक कान से सुनिए और दूसरे से...
शो यानि दिखावा करना सबके बस का नहीं ... और मेरे तो बिल्कुल नहीं। पर जमाने के साथ चलते हुए इसकी कमी मुझे काफी खलती है। क्यों कि हर जगह इसकी जरूरत मुझे मुंह चिढ़ाती सी दिखती है।
कुछ दिनों पहले ही हमारी जानने वाली एक महिला हमसे टकराईं। यहां बता दूं कि वे खुद काफी टिप टॉप में रहती हैं यानि हमेशा बाल संवरे रहते हैं, आंखों में काजल होती है, होंठों पर लाल लिपस्टिक का रंग और कुल मिलाकर खूबसूरत भी हैं वो। शायद इसलिए किसी पर भी टिप्पणी करने का मौका अपने हाथों से जाने नहीं देती। जाहिर सी बात है मुझसे मिलते ही उन्हें अनगिनत मौके मिल जाते हैं।
ये सब भी इंटरटेनमेंट का हिस्सा है जो बोरियत भरी जिंदगी में हंसने का मौका देता है। इसलिए ही सोचा की आप सब के साथ शेयर करूं ताकि आप भी थोड़ा हंस लें। कुछ दिनों पहले ही वो मुझसे मिली थीं और मेरे ड्रेस से लेकर रबड़बैंड तक पर कमेंट कर दिया था। जैसे – वो हो सासू मां बाहर गयी हैं तो फैशनेबल ड्रेस डाल रही... रबड़बैंड तो मम्मियों के जमाने का लगाया है आपने... कहां से लायीं...। मुस्कुराती हुई मैं वहां से अपने काम के लिए आगे बढ़ गयी।
हालांकि शुरुआत में उनकी बातें बुरी लगी थी पर अब एक कान से सुनती हूं और दूसरे से निकाल देती हूं। उससे भी नहीं होता तो उनके जाते ही हवा में फूंक मारती हूं जोरदार ... नहीं समझे ... अरे, उड़ा देती हूं हवा में। जी हां हवा में। वैसे भी दिल्लीे की हवा अब साफ सुथरी कहां है।
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