कुछ कहना है...
Saturday, November 15, 2025
मनुस्मृति की बातें झुठला रहीं आज की महिलाएं
मनुस्मृति को तो पढ़ा और सुना होगा। इससे पता चलता है कि किस तरह महिलाओं को गुलाम और दास बनाने की कवायद सदियों पहले शुरू की गई थी। हालांकि मनुस्मृति के लेखक को यह भान भी न होगा कि इसका नतीजा महिलाओं को बुलंदी पर ले जाएगा। आज के समय में महिलाएं चौखट के भीतर दबने के बजाए अपने दम पर दुनिया में नाम कमा रहीं हैं। यही वे महिलाएं हैं जो मनुस्मृति में लिखी गई बातों को सिरे से झुठला रहीं हैं।
अंतरिक्ष से लेकर खेल के मैदान तक हर जगह उन्हीं महिलाओं का परचम बुलंद है जिन्हें मनुस्मृति में जिंदगी भर पुरुषों की गुलामी करने का आदेश दिया गया था। शादी से पहले पिता, शादी के बाद पति और मरते दम तक संतान इन महिलाओं का मालिक होगा। पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ वैसी महिलाएं भी घर से निकल कर कमा रहीं हैं जो अनपढ रहीं लेकिन अपनी क्षमता का बखूबी इस्तेमाल करना जानती हैं। मेरे यहां घरेलू सहायिकाएं इसका उदाहरण हैं। ये सभी अपनी आमदनी से घर का खर्च चला रहीं हैं।
अभी के समय में पिता ही अपनी बेटियों को आगे बढ़ाते हैं और समाज में दंभ भरते हैं। उनके बल पर आगे बढ़ने वाली बेटियां उन्हीं पुरुषों के साथ जीवन बिताना पसंद कर रहीं हैं जो उन्हें सम्मान देने के काबिल हैं।
Friday, November 14, 2025
किसकी दिल्ली...
महाराष्ट्र की तरह ही अगर देश की राजधानी दिल्ली ने भी भेदभाव किया होता तो न जाने कितने ही लोग बगैर आसरा भटक रहे होते। करीब दो दशक से मैं यहां हूं... मानती हूं कि यहां काफी प्रदूषण है। इसे लोगों ने ‘चैंबर ऑफ गैस’ भी नाम दे दिया है। इसके बावजूद यह मेरा और न जाने कितनों का ही पसंदीदा स्थान है। शायद इसलिए ही इसे दिलों वाली दिल्ली कहा जाता है।
बिहार में बाढ़ के कारण सब गंवाने वालों से लेकर मध्य प्रदेश के किसान जिन्हें खेत से खाने को नहीं मिल रहा... सभी दिल्ली आकर शुरुआत में फ्लाईओवर तले और फिर किसी तरह झुग्गियों ओर किराए के मकान में आसरा लेकर रोटी कमाते हैं।
सबकी अपनी कॉलोनी है यहां
आज रास्ते में एक दीवार पर पोस्टर लगी दिखी, इसपर लिखा था उत्तराखंड वालों के लिए विशेष छूट। साथ में एक तस्वीर लगी थी जिसमें पहाड़ी महिलाओं की बड़ी सी नथ पहने खूबसूरत तस्वीर लगी थी। यहां आकर अपना जहां बसाने वालों के इस पोस्टर पर भी शायद ही कोई आपत्ति जताए। ये तो उत्तराखंड की बात हुई। लेकिन यहां बंटवारे के समय जो पाकिस्तान से निकाले गए उन्हें भी इसी दिल्ली ने पनाह दी, कश्मीर से निकाले गए कश्मीरी पंडितों का गुजर बसर भी दिल्ली एनसीआर में ही हुआ। इनमें से एक कश्मीरी पंडित से व्यक्तिगत तौर पर मेरी बात हुई थी। बुजुर्ग डॉक्टर ने कोरोना महामारी से पहले ही मुझसे अपना दुख बयान किया था। उन्होंने बताया था मात्र 35 रुपये जेब में और परिवार को लेकर कश्मीर से जान बचाकर भागे थे। उस समय इसी नोएडा में उन्हें छत मिली और अब जाकर सम्मानजनक जिंदगी बसर कर रहे हैं।
इसके अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, बांग्लादेश यहां तक की अफगानिस्तान के लोगों को खुशी से जीवन यापन करते दिल्ली में देखा जा सकता है।
कुछ लोगों को तो ऐसे बोलते भी सुना है, हमारे गांव में तो इतना बड़ा घर है, इतना बड़ा आंगन... यहां की न सब्जी अच्छी न दूध। ऐसे लोगों से मेरा आग्रह है कि वे हम जैसों का दिल न दुखाएं। आखिर गुजारा यानी रोज की रोटी तो इसी गैस चैंबर में मिल रही है। जिसे परेशानी है, चले जाओ यहां से। न दिल्ली ने पकड़ रखा है और न ही सरकार ने।
Friday, October 17, 2025
रिश्तों को चलाने में भी दिमाग
जब रिश्ते में नई-नई आई थी, उस वक्त इतना दिमाग ही नहीं था। कोई मेरे साथ चतुराई से काम कर रहा है, या कितनी चालाकी भरे बोल अपने मुंह से निकाल रहा है। लेकिन अब करीब दो दशक बाद समझ आ रहा और हैरानी हो रही कि मैं कैसी अबोध थी। पच्चीस साल की उम्र में इतनी नासमझी...।
ये दोष शायद मेरे मम्मी पापा का था। जिन्होंने बड़े नाजों से पाला। दुनिया की चालाकियों से बचाकर... लेकिन जिंदगी भर कैसे बचाएंगे। वो भी एक बेटी को... जिसे शादी के बाद दूसरे घर चले जाना है। दिन-रात अनजान लोगों के बीच। जहां हर नजर बस उसकी कमियां गिनने में लगी है। पहनने नहीं आता, खाने की शौकीन नहीं, गहनों कपड़ों से लेना देना नहीं। लापरवाह है पूरी। यहां तक कि वॉशरूम में कितना समय लगाती है और नहाने में केवल पानी गिरने की आवाज आती है।
कपड़ों में साबुन दिया करो।
शादी से पहले मम्मी ने कपड़े धोए या मौसी ने, खुद तो कभी परवाह ही नहीं रही।
अब घर की सफाई से लेकर दो बच्चों के कपड़े भी संवार कर रखने की जिम्मेदारी। ऑफिस में कलीग्स और बॉस की चिकचिक घर में तो पूछो मत।
Tuesday, September 16, 2025
बढ़ती उम्र के साथ नए अहसास और जज्बात
केवल किशोरावस्था या यौवन की दहलीज पर नए अहसास नहीं होते। जीवन के चार दशक पार करने पर भी नए जज्बातों और अहसासों का मेला लगा रहता है। इस उम्र में भी उम्मीदें होती हैं, सुंदर और आकर्षक लगने की। लेकिन आंटी-अंकल कहकर दरकिनार कर देती है नई पीढ़ी।
सबसे पहले परिपक्व समझे जाने लगते हैं, आपसे किसी तरह की गलती की उम्मीद नहीं होती। हमेशा मैच्योर बने रहो, हर जगह हंसना नहीं। अपने से कम उम्र वालों के साथ हंसी-मजाक तो बिल्कुल नहीं करनी, लोग हल्के में लेते हैं। ऐसी न जाने कितनी ही सलाह, खासकर यदि कोई महिला हो।
इन्हें कोई ये बात क्यों नहीं समझाता कि बढ़ती उम्र के साथ इच्छाएं खत्म नहीं हो जातीं बल्कि और बढ़ती हैं। क्योंकि यही उम्र है जब बच्चों के लंच, होमवर्क और किचन की चिकचिक से छुटकारा मिलता है।
Tuesday, November 7, 2023
मम्मा की कलम से...
सुबह सात बजे से एम्स हॉस्पिटल और फिर सेंट्रल मार्केट का चक्कर लगाकर वापस आते हुए मेट्रो ट्रेन में पापा की गोद में निश्चिंत भाव से सो रहे तुम्हारे चेहरे को मैं देख रही थी। अचानक मंजिल पर पहुंचने के बाद स्कूटी पर बैठे पापा के पीछे तुम्हें बैठाने लगी तो तुम्हारे जूते से पापा की ब्लू शर्ट में काला गंदा लग गया, उसे हाथों से साफ तो कर दिया मैंने, लेकिन एक ख्याल मन में घुमड़ने लगा।
कल को जब मैं और तुम्हारे पापा बूढ़े हो जाएंगे और ऐसा कुछ हमसे हो जाएगा तो तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया होगी इसपर। गुस्सा होगे और आगे से हमें अपने साथ बाहर लेकर नहीं जाओगे। ऐसा भी होगा कि हम थककर तुम्हारे या तुम्हारे दादा (Pragyan) के कंधे पर अपना सिर रखकर उसी निश्चिंतता को तलाशेंगे जो अभी तुमदोनों को दे रहे हैं।
फिलहाल तो ऐसे हालात हैं कि जिनके दो बेटे हैं- वो किस्तों में अपने मां बाप को रख रहे हैं- छह माह एक तो छह माह दूसरा।
ईश्वर ने साथ दिया तो हम दोनों यानि तुम्हारे मम्मी-पापा कभी भी तुम दोनों भाइयों से ज्यादा उम्मीदें नहीं रखेंगे और न ही तुम्हारे व्यक्तिगत मामले में दखल देंगे। जरूरी लगे तो अपनी सलाह दें दे। केवल तुमलोग हमें प्यार और सम्मान देना और कुछ नहीं चाहिए।
Monday, October 2, 2023
मेरी हर गलती को कैसे माफ कर देती हो मम्मी....
बचपन में बचाती थी, इसलिए जैसे ही आभास होता कि पापा डांटने वाले हैं, मम्मी के पीछे पहुंच जाती। डांटती मम्मी भी थी लेकिन तुरंत लाड़ जताने भी आ जाती थी।
आज खुद मम्मी बन गई हूं, लेकिन कहीं से कोई बोल दे, डांट दे, तो मम्मी की ही याद आ जाती है। ईश्वर उन्हें मेरे लिए सेहतमंद बनाए रखे। दुनिया में एक मम्मी ही तो है जिसे कुछ भी कह लो... डांट के बोल दो, फोन मत उठाओ, कभी सेकेंड भर में बोलो - मम्मी बिजी हूं, फ्री होकर फोन करती हूं। चाहे उस दिन मत ही करो फोन लेकिन वो सारी गलती भूल जाएंगी और फोन कर पूछेंगी क्या हाल...
Thursday, September 21, 2023
आधी आबादी को मिलेगा इस आरक्षण का फायदा...
कहने को तो प्रधानमंत्री ने महिलाओं के हक में कई फैसले लिए, कई अधिकार दिए। लेकिन क्या इसका फायदा आधी आबादी को मिल पा रहा है। पहले से ही ऐसा सुनती आई हूं कि विरोध या क्रांति के सुर या तो हाई क्लास या फिर लोअर क्लास में ही सुनाई दे सकता है। मिडिल क्लास तो न इधर के न उधर के। हां कुछ एक्सेप्शन हो सकतीं हैं इस क्लास में, लेकिन अधिकतर महिलाएं अपना सम्मान, मां बाप की प्रतिष्ठा, परिवार की भलाई सोचती रह जाती हैं। इससे भी न हुआ तो उनके उठते कदमों की बेड़ी उनके बच्चे बन जाते हैं। और ये जिंदगी भर अपनी आवाज उठा नहीं पातीं। अब आरक्षण मिलने के बाद भी हमारी आधी आबादी में से कितनी फीसद महिलाएं अपना सुर ऊंचा कर सकेंगी।
Wednesday, February 1, 2023
समझ में आने लगा है- "अनुभव" किसे कहते हैं
अब मैं भी कहती हूं यूं हीं धूप में सफेद नहीं हुए हैं मेरे बाल। चेहरे पर नासमझी और मासूमियत नहीं बल्कि दिखने लगी हैं समझ और अनुभव की लकीरें।
जिंदगी के सफर में अनुभव किसे कहते हैं, अब यह समझ में आने लगा है। हालात के साथ सामने वाला किस अंदाज में बदलता है इसके भी अनेकों उदाहरण मिल चुके हैं अब तक।
कोई फोन नहीं उठाता या फिर किस तरह प्रतिक्रिया देता है अब इसके पीछे का मतलब तुरंत समझ आ जाता है। सभी की उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करते-करते थकान सी महसूस होने लगी है। अब तो सीधा दिमाग में आता है् ...में जाओ।
40 के करीब पहुंच चुकी हूं और एक निश्छल प्यार अपनी सगी मां का ही दिखता है जिसमें कोई स्वार्थ नहीं, न किसी तरह का छल और न ही दिखावा। कितनी ही झल्लाहट के साथ बोल दूं वो कभी नाराज नहीं होती न ही दिल से उन बातों को लगाती है। उल्टा उनके दिल में मेरे लिए सहानुभूति आती है कुछ देर बाद फिर फोन कर पूछती हैं सब ठीक है न। भगवान उनको सेहतमंद रखे और उनका आशीर्वाद हम भाई बहनों पर सदैव बनाए रखे।
Tuesday, December 3, 2019
इस तरह कोई अपना गया होता तो...
किसी का ट्वीट आज सुबह पढ़ा। इस ट्वीट को पढ़कर ऐसा लगा कि कानून बनाने वालों के दिमाग में ये बातें क्यों नहीं आती हैं। बड़ा अहम संदेश देने वाले इस ट्वीट में लिखा था- 6 माह, 2 साल, 7 साल, 10 साल, 17 साल की मासूम बच्चियों से दुष्कर्म होता है तो दोषियों को सजा देने वक्त उनके उम्र का ख्याल क्यों, जब उन्हें दुष्कर्म करने आता है तब तो वे वाकई मैच्योर होंगे फिर सजा के हकदार क्यों नहीं। सऊदी अरब में इस कुकर्म की सजा है- सिर कलम करना।
आज ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए हर उस पापी और दुष्कर्मी को जो ऐसा करते वक्त तनिक भी अपनी मां बहन का चेहरा नहीं याद करता।
कल्पाना करके सिहर जाती हूं मैं। किसी अपरिचित का रास्ते में, बस-ऑटो में छू जाना मुझे इरिटेट कर जाता है कैसे उस हैवानियत में शरीर को तार-तार करने करने दे सकती है कोई लड़की... उफ भगवान कहां होते हो तुम उस वक्त...।
Tuesday, August 28, 2018
अनुभवों का बखान
सोचा कि आज अपने अनुभवों की बखिया उधेरूं....। आज इस बात का सौ फीसद दावा करती हूं कि मैंने अपने अनुभवों से काफी कुछ सीखा है। कई कमियां हैं मुझमें। सबसे बड़ी कमी है लोगों की पहचान करनी नहीं आती। दूसरा मैं बड़ी वाली ‘स्लोी प्रोसेसर’ हूं क्योंबकि जवाब तो आता है पर देर से।
बता दूं कि ‘स्लो‘ प्रोसेसर’ शब्द की एक अलग कहानी है मेरे पास... किसी दोस्त ने ये उपाधि दी थी मुझे। इसके अलावा अनगिनत कमियां भरी हैं मुझमें...। लोग कहते हैं मैं बदल गई हूं, उनके प्रति मेरा बिहेव काफी बदल गया है। इनसे मैं क्या कहूं क्या सफाई दूं... काश की उनसे कह पाती।
दरअसल, मैं बदली नहीं हूं अब जाकर उनकी वास्तविकता मेरे सामने आई है। मैं उन्हें पहचान गई हूं...। उनका झूठी हंसी, सहानुभूति, दिखावे का प्यार, नकली भरोसे के अंदर छिपा छलावा सबको मेरी नजरें अब ण्क्स रे मशीन की तरह देख रही है। पर डर लगता है कि कहीं इस कारण सच्चा प्यार और भरोसा भी मुझे नकली न लगने लगे।
मेरे साथ दिक्कत इस बात की है कि एक बार अगर कोई मेरी नजरों में गिरा फिर उससे हाय, हैलो तो दूर चेहरा देखना भी पसंद नहीं करती। पर ये कंडीशन और जगहों पर तो चल जाती है लेकिन फैमिली में... सब जानते हुए भी ऐसे लोगों के लिए दिल को मजबूत करना पड़ता है और जबरन उनका चेहरा देखना और रिश्तों को अहमियत देते हुए सम्मान करना मजबूरी हो गई है। कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है न इसके लिए अगर आप इसे पढ़ रहे हैं और बता सकते हैं तो प्लीज कमेंट में बताएं... इंतजार कर रही हूं।
Subscribe to:
Comments (Atom)




