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Friday, July 24, 2015

हमेशा अलग ही रहा सुबह का रंग...

कहते हैं न कि सुबह हुई तो हर जगह उजियारा होगा और रात हुई तो सब जगह अंधेरा... पर ऐसा है क्‍या, मुझे नहीं लगता। मैं भारत और अमेरिका की बात नहीं कर रही कि यदि भारत में रात है तो अमेरिका में दिन होगा बल्‍कि मैं बात कर रही हूं इसी देश के अलग अलग घर के बारे में। मेरी सुबह हर घर में अलग सी रही है आज तक। कहने का अर्थ जब मम्‍मी के घर पर थी तो सुबह अलग ही थी यहां तक कि वो गंध भी अलग थी जो अब खोजे से भी नहीं मिल सकती शायद। हर उम्र में सुबह के मायने बदलते गए। रात भी अलग ही थी उस वक्‍त। मम्‍मी के साथ सोना और अगर हल्‍का सा बुखार चढ़ गया तब तो मेरे चेहरे को मम्‍मी अपने आंचल से ढक देती थी रात को सोते वक्‍त। उनके आंचल की खुश्‍बू कह लें या मम्‍मी का प्‍यार... बड़ा अच्‍छा होता था वो सब, उस वक्‍त तो ये सब नॉर्मल सा लगता था मतलब स्‍पेशल नहीं पर अब जब काफी दूर हूं और शायद ही वो ममता की छांव मिले तो अच्‍छा लगता है, याद आती है सारी बातें। बिना जिम्‍मेवारियों वाले दिन... आजादी का अहसास। सुबह तो उस वक्‍त भी उठती थी मैं... पढ़ाई की जिम्‍मेवारी भी थी। पर एक अलग सी गंध थी जो आज अभी लिखते वक्‍त भी मेरे नथुनों में समा सी गयी हैं। अभी के मुकाबले इतनी सुविधाएं नहीं थी न इतना बड़ा घर था पर खुशियां ही खुशियां थीं। छोटे भाई बहन का साथ था... यही बहुत था। सुबह की धूप एक ही कमरे में आती थी वो भी छोटी सी खिड़की से, आज हमारे बड़े घर की गैलरी में सुबह की धूप खूब अच्‍छे से आती है पर वो पहले वाला सुबह का रूप ही मिस करती हूं आज भी।

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