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Saturday, October 22, 2011
आज के सुदामा...
लोग इतने उलझे और टेढे हैं की सीधी नजर से तो साफ दिखते ही नहीं और इस चक्कर में मैं पहली नजर में किसी इंसान को सही समझ लेती हूं और फिर बाद में पता चलता है कि कितने टेढे लोगों से मेरा वास्ता पड़ा है।
खुद कुछ कर नहीं सकते और दूसरों की टांगे खींचने की मंशा रखते हैं। ऐसे ही लोग दूसरों की खुशी से हमेशा जलते हैं। बॉस को गालियां देने के अलावा कुछ कर ही नहीं सकते पता नहीं किसकी पैरवी से नौकरी पा ली तो खुद को तुर्रम खां समझने लगे अरे... एक लाइन खुद से लिख कर दिखाओ तो जाने। हां लेकिन दूसरों को चुनौती देने से घबराते नहीं। शायद उन्हें लगता है कि काफी जीनियस हैं या अगर किसी कंपटीशन में बैठे तो सबसे ज्यादा नंबर उन्हें ही आए और बातें तो देखो फलां मंत्री से हमारी पहचान है अरे उसे तो जो कह दूंगा कर देगा लेकिन सुदामा जो ठहरे बेचारे कृष्ण से कुछ मांगेंगे कैसे...।
मुझे तो हंसी आती है जो दूसरों को कहते हैं तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे बॉस... हां मुझे कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि मुझमें जो काबिलियत है हो सकता है तुममे न हो इसलिए निखारो उस काबिलियत को ताकि लोग तुम्हें भी सराहे।
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agreed suhani ji...har office kiyahi kahani hai...ajeebo-gareeb kism k logon se peecha chudana mushqil hai..
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